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सूत्र-विभाग-३४ कायोत्सर्ग प्रतिज्ञा का पाठ [२०७ फिर नमस्कार मन्त्र गिन कर कायोत्सर्ग पाले और पुनः एक प्रकट नमस्कार मंत्र और लोगस्स पढे। पीछे पहले बताई हुई विधि के अनुसार दों 'इच्छामि' खमासमणो पढ़े।
॥ पांचवा आवश्यक समाप्त ॥
कायोrसर्ग प्रतिज्ञा का पाठ
इच्छामि गं भते तुन्भेहि : चाहता हूँ, हे भगवन् ! आपके द्वारा अब्भणुण्गाए समारणे : प्राज्ञा मिलने पर देवसिय
: दिन सबधी पायच्छित्त
: प्रायश्चित्त (स्थान, अतिचारो) की विसोहणत्यं- : विशुद्धि करने के लिए करेमि, काउसग्गं । : करता हूँ, कायोत्सर्ग ।
'कायोत्सर्ग' प्रश्नोत्तरी प्र० : कायोत्सर्ग आवश्यक में सदा समान संख्या में __लोगस्स का ध्यान क्यो नही किया जाता?
उइसलिए कि 'देवसिक और रात्रिक प्रतिक्रमण में पिछले लगभग १५ मुहूर्त (१२ घण्टे) जितने अल्प समय मे लगे अतिचारो की ही शुद्धि करनी होती है, अत उस शुद्धि के लिए मात्र चार लोगम्स का ही छोटा ध्यान पर्याप्त होता है। पर पाक्षिक प्रतिक्रमण मे पन्द्रह दिनो मे लगे अनिचारो की शुद्धि करनी होती है, अत चार लोगस्स से तीगुने या दूने (१२ या ८) लोगस्स- का बडा ध्यान आवश्यक होता है तथा चातुर्मासिक प्रतिक्रमण मे चार महीने मे लगे अतिवारो की शुद्धि करनी