SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सूत्र विभाग - ३३ 'क्षमापना प्रश्नोत्तरी' २०३ उ० : 'अपने से 'बडे पूज्य पुरुषो से क्षमायाचना, उनके गुणगान करते हुए और उनका विनय करते हुए करनी चाहिए ।' यह बताने के लिए प्र० : 'क्षमापना ' प्रतिक्रमरण आवश्यक में क्यों रक्खी गई ? उ० : हमने १. जो दूसरे जीवों का प्रचिनय ग्रपराध करके हिंसा का पाप किया तथा २ दूसरो के द्वारा हमारे प्रति अपराध किये जाने पर हममे जो कोध कषाय उत्पन्न हुई, वे दोनो पाप क्षमापना से दूर होते है, इसलिए । प्र० : ये दोनो पाप तो अट्ठारह पाप के प्रतिक्रमण से ही दूर हो जाते हैं, तब पृथक् क्षमायाचना क्यो की जाती है ? उ० १. हिसा से हटना और कषाय का उपशम करना' 1 ये दोनो जैन धर्म के प्रचार मे मुख्य हैं । इसलिए इन दोनो की प्राप्ति के लिए विशेष प्रतिक्रमण करना इष्ट है । क्षमापना मे, जीवो के हृदय से हिंसा से हटाने की और कषाय उपशम करने की अद्भुत शक्ति है 1 अतः उक्त दोनो की प्राप्ति के लिए पृथक् क्षमायाचना की जाती है । -प्र० : हम क्षमा याचना करे, पर सामने वाले क्रोधो जीव क्षमा न दे, तो १ उ० : हार्दिक क्षमायाचना और बार-बार क्षमायाचना से प्रायः सामने वाले का क्रोध उपशान्त हो जाता है और वह क्षमा प्रदान कर देता है । कदाचित् वह क्षमा प्रदान न भी करे, तो क्षमायाचना करने वाला तो क्षमायाचना करने से पापमुक्त बनता ही है ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy