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सूत्र - विभाग - ३३ कुलकोटि खमाने का पाठ
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तपस्या करते हैं, शुद्ध भावना भाते हैं, संवर करते हैं, पौषध करते हैं, प्रतिक्रमरण करते है, तीन मनोरथ चिन्तवते हैं, चौदह नियम चितारते हैं, जीवादिक नव पदार्थ जानते हैं, श्रावक के इक्कीस गुरण करके युक्त, एक व्रतधारी, यावत् बारह व्रतधारी, भगवान् की प्राज्ञा में विचरते हैं, ऐसे बड़ो से हाथ जोड़, पैरों में पड करके क्षमा माँगता हूँ, श्राप क्षमा करें, आप क्षमा करने योग्य हैं और शेष सबसे समुच्चय क्षमा मांगता हूँ ।
चौरासी लाख जोवयोनि खमाने का पाठ
सात लाख पृथ्वीकाय, सात लाख प्रकाय, सात लाख तेजस्काय, सात लाख वायुकाय, दस लाख प्रत्येक वनस्पतिकाय, चौदह लाख साधारण वनस्पतिकाय, दो लाख द्वीन्द्रिय, दो लाख त्रीन्द्रिय, दो लाख चतुरिन्द्रिय, चार लाख नारकी, चार लाख तिर्यञ्च पंचेन्द्रिय, चार लाख देवता, चौदह लाख मनुष्य -- ऐसे चार गति में (७+७+७+७+१०+१४+२+२+२+४+४ +४+१४ = ८४) चौरासी लाख जीव-योनि के सूक्ष्म बादर,
पर्याप्त पर्याप्त जीवो मे से किसी जीव का हिलते-चलते, उठतेबैठते, सोते-जागते हनन किया हो, कराया हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो, तो अठारह लाख चौवीस हजार एक सौ बीस [१८,२४,१२० ] प्रकार से तस्स मिच्छामि दुक्कडं 4
कुल कोटि खमाने का पाठ
पृथ्वीकाय के बारह लाख, प्रकाय के सात लाख, तेजस्काय के तीन लाख, वायुकाय के सात साख, वनस्पतिकाय के अट्ठाईस लाख, द्वीन्द्रिय के सात लाख, त्रीन्द्रिय के आठ लाख, चतुरिन्द्रिय के नव लाख, जलचर के साढ़े बारह लाख, स्थलचर