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________________ २०० सुवोध जैन पाठमाला--भाग २ सवे खमावइत्ता, सभी को खमाकर, खमामि : खमता हूँ (क्षमा प्रदान करता हूँ) सव्वस्स : सभी (आचार्य से संघ पर्यन्त) को अहयपि ॥२॥ : मैं भी ॥२॥ सव्वस्स जीवरासिस्स, : (इसी प्रकार) सम्पूर्ण जीवराशि को भावो : भाव सहित धम्म-निहिय : (क्षमा) धर्म मे रखकर नियचित्तो॥ : अपने चित्त को सव्वे खमावइत्ता, : सभी को खमाकर खमामि : खमता हूँ (क्षमा प्रदान करता हूँ) सव्वस्स अहय पि ॥३॥] : सभी (जीव राशि) को में भी ।।३।। खामेमि सवे जीवा : खमाता है, सभी जीवो को (इसलिए) सव्वे जीवा खमंतु मे : सभी जीव खमे मुझे (मुझे क्षमा दें) मित्ती में : (क्योकि) मैत्री है मेरी सव्व भूएसु : सभी जीवों से (परन्तु। वेर मज्भं रण केरगई॥४॥: वैर मेरा नही है किसी से भी ।।४।। एवमह, आलोइय- : इस प्रकार मै अपनी आलोचना, निदिय- गरहिय- : निन्दा, गर्हा और दुगुंछिय सम्म । : जुगुप्सा (घृणा) सम्यक् प्रकार से करके तिविहेण : (मन वचन काया इन) तीनो योगो से पडिक्कतो : पापो से प्रतिक्रमण करके वदामि : वन्दना करता हूँ, जिणे चउन्चीस ॥५॥ : चौवीसो जिनेश्वरो को ॥५॥ श्रावक-श्राविकाओं को खमाने का पाठ अढाई द्वीप पन्द्रह क्षेत्र मे मनुष्य तिर्यञ्च श्रावक-श्राविका, वाहर तिर्यञ्च श्रावक-श्राविका दान देते हैं, शील पालते हैं।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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