________________
' सूत्र-विभाग-३३ 'खामेमि सव्वे जीवा' खमाने का पाठ [ १६६
पाठ ३३ तैतीसवाँ विधि : पिछले दोहे पढने के पश्चात् आगे भी श्रावक सूत्र पढ़ने वाले बैठे-बैठे ही 'पायरिय उवज्झाए' आदि तीन गाथाएँ, श्रावक-श्राविकारो को खमाने का पाठ, चौरासी लाख जीव-योनि खमाने का पाठ, 'खामेमि सव्वे जीवा' आदि दो गाथाएं और अट्ठारह पापस्थानक कहते हैं, तथा श्रमण सूत्र पढने वाले खड़े-खड़े ही निम्न पाठो को क्रमबद्ध पढते हैं।
'खामेमि सन्चे जीवा' खमाने का पाठ
फुल
[प्रायरिय उवज्झाए : आचार्य उपाध्याय (आदि बडों पर) सीसे
: शिष्य (आदि छोटो पर) साहम्मिए
: (तथा) स्वधर्मी (समान पुरुषो पर)
: कुल (जो एक आचार्य परम्परा के) गरणे ।
: या गण (अनेक आचार्य परम्परा के
हैं उन) पर जे मे केई
: जो मेने कोई भी कसाया
: क्रोध आदि कषाये की हो (तो) सवे
: (उसके लिए मैं उन) सभी को तिविहेण
: (मन वचन काया इन) तीनो योगो से खामेमि ॥१॥
: खमाता हूँ (क्षमायाचना करता हूँ) सव्वस्स
: (इसी प्रकार) सम्पूर्ण समरण
: श्रमण (साधु-साध्वी श्राविक
श्राविका) संघस्स; भगवो : संघ भगवान् को अंजलि करिम सीसे। : अजलि करके सिर पर