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१९६ ] सुबोध जन पाठमाला-माग २
अरिहन्त प्राचार्य उपाध्याय साधु या श्रावक श्राविका पद में श्री धर्माचार्यजी (अपने धर्माचार्य का नाम ग्रहण करे। धर्म उपदेश के दाता, सस्यकत्व रूप रत्न के दाता, ज्ञान रूप नेत्र के दाता, संसार सागर से तिराने वाले, मोक्ष मार्ग में लगाने वाले, हृदय के हार के समान, मस्तक के मुकुट के समान, कान के कुण्डल के समान, आँख की कोकी के समान, रत्त की पेटी के समान, कल्पवृक्ष के समान, चिन्तामरिग के समान, आदि अनेक उपमा सहित अनन्त अनन्त उपकारी महापुरुष ।
गुरु मित्र गुरु मात, गुरु सगा गुरु तात, गुरु भूप गुरु भ्रात, गुरु हितकारी हैं। गुरु रवि, गुरु चंद्र, गुरु देव गुरु इन्द्र, गुरु दिया चिदानद, गुरु पद भारी है ।। गुरु दिया ज्ञान ध्यान, गुरु दिया दान मान, गुरु देवे मोक्ष स्थान, सदा उपकारी है। कहत है तिलोक रिख, भली भली दिवी सीख, पल पल गुरुजी को, वन्दना हमारी है।
ऐसे श्री धर्माचार्यजी ... ... ... • सदाकाल शरण हो।
विधि : श्रावक सूत्र पढने वाले निम्न दोहे सीधे पल्यंकादिक ग्रासन से वैठ कर पढते हैं तथा श्रमण सूत्र पढ़ने वाले खड़े होकर पढते है।
॥ दोहे ॥ अनन्त चोवीसी जिन नम, सिद्ध अनन्त करोड़। केवल ज्ञानी गणधरा, वन्दू युग कर जोड़ ॥१॥