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सूत्र-विभाग-३२ वन्दना प्रश्नोत्तरी [ १९७ दो करोड केवल धरा, विहर-मान जिन वीस । सहस्र युगल कोटि तथा साधु नमं निश-दीस ॥२॥ धन धन साधु साध्वी, धन धन है जिन धर्म । जो सुमरण पालन करे, क्षय हो आठो कर्म ॥३॥ अरिहन्त सिद्ध समरू सदा, प्राचारज उवज्झाय । साधु सकल के चरण को, वन्, शीश नमाय ॥४॥
वंदना प्रश्नोत्तरी
प्र० अरिहन्त उपकार की दृष्टि से ही बड़े हैं, आत्मिक गुणो की दृष्टि से तो सिद्ध बडे है, फिर अरिहन्त के गुण अधिक क्यो? और सिद्ध के गुण कम क्यों ?
उ० : अरिहन्त के जो बारह गुण है, उसमे, पहले के चार गुरण ही आत्मिक गुण हैं, शेष बारह गुरण तो उपकार सबधी हैं। और सिद्ध के सभी पाठो ही गुण, आत्मिक गुण हैं, अतः अरिहन्त के आत्मिक गुणो से, सिद्धो के आत्मिक गुण अधिक ही हैं, कम नही।
प्र०: प्राचार्य श्री के जो पहले छत्तीस गुण बताए हैं, वे सामान्य साधुनो मे भो मिलते हैं, फिर उनमे विशेषता क्या है ? -
उ० : आचार्य श्री मे वे गुण, सभी सामान्य साधुओ की अपेक्षा प्राय अधिक विशुद्ध रूप मे मिलते हैं, अत वे विशेषतायुक्त होते हैं। दूसरी प्रकार के जो छत्तीस गुण बताए हैं, उनसे तो उनमे स्पष्टतया विशेषता दिखायी देती ही है।