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________________ सूत्र - विभाग - ३२. पाँच पदों की वन्दनाएँ J १६५ ज्ञान न बोले वाय, बुझाई कषाय लाय, किरिया भण्डारी है। भरणे आठो याम, लेवे भगवन्त नाम, धरम को करे काम, ममता कूं मारी है । कहत है तिलोकरिख, करमो का टाले विख, ऐसे मुनिराज ताकूं वन्दना हमारी है ||५|| ऐसे साधु जी महाराज हाथ जोड मान मोड | J तिक्खुत्तो श्रायाहिण आप मागलिक हो ... · .. · क्षमा करिये । नमस्कार करता 1 मत्थएण वदामि । सदा काल शरण हो । .. विधि : पाँच पदो की वन्दना के पश्चात् कोई-कोई धर्माचार्य की और कोई-कोई पांच परमेष्ठि की समुच्चय तथा धर्माचार्य की वन्दना निम्न पाठो से करते है । पाँचों पद मे पाँच परमेष्ठि भगवान् । १. अरिहन्त देव १२ बारह गुरण सहित, २. सिद्धदेव ८ आठ गुरण सहित, ३. श्राचार्यजी ३६ छत्तीस गुरण सहित ४ उपाध्यायजी २५ पच्चीस गुरण सहित और ५. साधुजी २७ गुरण सहित -यों सब १०८ गुण सहित । सवैया - नमूं १ अरिहन्त नमूं २ सिद्ध, ३. नमूं ३ श्राचारज । नमूं ४ उवज्झाय, नमूं ५. साघु अरणगार ने । नर्मू सब केवली ने, थविर ने, तपसी ने । नमूं कुल, गरण, सघ, साधु गुरणधार ने । नमूं सब गुणवन्त, ज्ञानवन्त ध्यानवन्त । शीलवन्त तपवन्त, क्षमा गुण सार ने । ऋषि लालचंद कहे, नमूं पाँचो पद हो को । १नर्मू, २. नमूं, ३ नमूं ४. नमूं, ५. नमूं श्री नवकार ने ॥ ऐसे श्री पच परमेष्ठि भगवान् सदा काल शररण हो । ...
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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