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मुबोध जैन पाठमाला भाग-२
११ पुष्पचूलिका : जिसमे देवियाँ बनी, उनका वर्णन है १२. वृष्णिदशा : जिसमे यदुवशी साधुग्रो का वर्णन है चार मूलसूत्र ६. उत्तराध्ययन : जिसमे भगवान की अन्तिम वारणी है २. दशकालिक : जिसमे संक्षिप्त साध्वाचार है ३. नन्दीसूत्र : जिसमे पाँच ज्ञान का वर्णन है ४. अनुयोगद्वार : जिसमे शास्त्र प्रवेश की पद्धति है । चार छेद सूत्र १. दशाश्रुतस्कध : जिसमें असमाधि आदि का वर्णन है। २. वृहत्कल्प : जिसमे साधुप्रो के कल्प का वर्णन है ३. व्यवहार : जिसमे साधुग्रो के व्यवहार का
_वर्णन है ४. निशीथ : जिसमे अतिचारो का प्रायश्चित्त है और बत्तीसवाँ 'आवश्यक सूत्र' तथा अन्य अनेक ग्रन्थ के ज्ञाता सात, नय
: मुख्य रूप से एक धर्म का ग्राही
विचार चार,निक्षेप : समझने के लिए विषयो का विभाग निश्चय
: भीतरी वास्तविक दृष्टि व्यवहार
: बाहरी औचित्य की दृष्टि चार प्रमाण : प्रत्यक्ष, अनुमान, उपमान, आगम
और स्वमत परमत के ज्ञाता मनुष्य या देवता कोई भी विवाद मे जिनको छलने मे समर्थ नहीं, जिन नहीं, पर जिन समान, केवली नहीं, पर केवली समान हैं।
सवैया पढत ग्यारह अग, करमो सू करे जग (युद्ध), पाखडी (वादी) को मान भग, करण हुशियारी है।