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सूत्र-विभाग-३२ पांच पदों की वन्दनाएँ । १९५ न बोले वाय, बुझाई कषाय लाय, किरिया भण्डारी है। ज्ञान भरणे आठो याम, लेवे भगवन्त नाम, धरम को करे काम, ममता कू मारी है। कहत है तिलोकरिख, करमो का टाले विख, ऐसे मुनिराज ताकू वन्दना हमारी है ॥५॥
ऐसे साधु जी महाराज .... ... क्षमा करिये । हाथ जोड मान, मोड • • • नमस्कार करता हूँ। तिक्खुत्तो पायाहिण · · · मत्थएण वदामि । 'आप मालिक हो .. .. ... सदा काल शरस हो ।
विधि : पाँच पदो की वन्दना के पश्चात् कोई-कोई धर्माचार्य की और कोई-कोई पाँच परमेष्ठि की समुच्चय तथा धर्माचार्य की वन्दना निम्न पाठो से करते है।
पांचो पद मे पाँच परमेष्ठि भगवान् । १. अरिहन्त देव १२ बारह गुण सहित, २. सिद्धदेव ८ पाठ गुरण सहित, ३. प्राचार्यजी ३६ छत्तीस गुण सहित ४ उपाध्यायजी २५ पच्चीस गुण सहित और ५. साधुजी २७ गुरण सहित-यो सब १०८ गुरण सहित। सवैया-नमूं १ अरिहन्त, न{ २ सिद्ध, ३. नमूं ३ आचारज ।
नमूं ४ उवज्झाय, नमूं ५. साधु अरणगार ने। नमूं सब केवली ने, थविर ने, तपसी ने। नमूं कुल, गण, सघ, साधु गुणधार ने। नमू सब गुणवन्त, ज्ञानवन्त ध्यानवन्त । शीलवन्त तपवन्त, क्षमा गुण सार ने। ऋषि लालचद कहे, नमूं पाँचो पद हो को। श्न, २. नमू, ३ नमूं ४. नमू,५. नमूं श्री नवकारने । ऐसे श्री पच परमेष्ठि भगवान् " सदा काल शरण हो।