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१६४ ] सुबोध जन पाठमाला--भाग २ १६. वैराग्यवान् : राग द्वेष रहित होते हैं, २०. मन समाहरगता : मन वग मे रखते हैं, २१. वचन समाहरणता: वचन वश मे रखते है, २२. काय समाहरणता : काया वश मे रखते है, २३. ज्ञानसम्पन्नता : सम्यग्ज्ञान सहित होते है, २४. दर्शन सम्पन्नता : सम्यग्दर्शन सहित होते है, २५ चारित्र सम्पन्नता : सम्यक्चारित्र सहित होते है, २६ वेयरण
: (भूख, प्यास, रोग, प्रातक आदि) अहियासरगया : अशाता वेदनीय को अति सहना
करते है २७. मारणांतिय- : मरणांतिक कष्ट को भी अति सहना अहियासरगया
करते हैं या मारने वाले के प्रति भो
द्वेष नहीं करते है। पाँच प्राचार पालते हैं, छह काय की रक्षा करते हैं, सात कुव्यसन छोड़ते हैं, आठ मद छोड़ते हैं, नव वाड सहित ब्रह्मचर्य पालते हैं, दश प्रकार यति (साधु) धर्म पालते हैं, बारह भेद से तपश्चर्या करते हैं, सत्रह भेद से सयम पालते है। अट्ठारह पापों को त्यागते है, बावीस परीषह जीतते हैं, तीस महामोहनीय कर्म निवारते हैं, तैतीस प्राशातना टालते हैं, बयालीस दोष टाल कर आहार-पानी लेते है, सैतालीस दोष टाल कर भोगते हैं, बावन अनाचार टालते हैं, बुलाने से आते नहीं है, निमन्त्रण से जीमते नहीं हैं, सचित्त के त्यागी हैं, अचित्त के भोगी हैं, केशो का हाथ से लोच करना, नंगे पैर चलना आदि कायवलेश करते हैं और मोह ममता रहित हैं।
सवैया-पादरी सयम भार, करणी करे अपार, समितिगुपति धार, विक्रया निवारी है। जयणा करे. छह-काय, सावध