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१६० ] बारह उपांग
चररण सत्तरी
कररण सत्तरी
सुबोध जैन पाठमाला भाग - २
: अगुली यादि उपागो के समान, अंग सूत्रो के किसी एक अश के विवेचक गौरण सूत्र
: चरण ( चारित्र) के ७० सित्तर बोल | : करण (क्रिया) के ७० सित्तर बोल
ये (११+१२+१+१=२५ या १२+१२+१=२५) पच्चीस गुरग सहित हैं ।
ग्यारह अंग के पाठ अर्थ सहित सम्पूर्ण जानते हैं, १४. पूर्व (बारहवे दृष्टिवाद नामक अग* ) के ( भी ) पाठक हैं ( वर्त्तमान काल की अपेक्षा) निम्नोक्त बत्तीस सूत्रो के ज्ञाता हैं । ग्यारह अंग १. श्राचारांग २. सूत्रकृतांग
:, जिसमे आचार का वर्णन है : जिसमे विचार ( मत) का वर्णन है
पाँच महाव्रत पालते हैं, चार कषाय टालते हैं, ज्ञान दर्शन चारित्र सम्पन्न हैं, नव वाड सहित ब्रह्मचर्य पालते हैं, दस प्रकार यति (साधु) धर्म पालते हैं दश प्रकार की वैयावृत्य करते हैं, बारह भेद से तपश्चर्या करते हैं, सत्रह भेद से संयम पालते हैं। ये चररण के (५+४+३+ε+१०+१०+१२+१७=७० ) सित्तर बोल
हुए ।
पाँच इन्द्रिय जीतते हैं, पांच समिति, तीन गुप्ति विशुद्ध श्राराधते हैं, चारों प्रकार का पिण्ड ( श्राहार, शय्या, वस्त्र, पात्र,) विशुद्ध (४२ दोष टाल कर ) ग्रहण करते हैं; चार प्रकार का श्रभिग्रह ( द्रध्य से क्षेत्र से, काल से, भाव से) करते हैं, बारह साधु प्रतिमाएँ धारण करते हैं, वारह भावनाएं भाते हैं, २ पच्चीस भेद से प्रतिलेखन करते हैं । ये कररण के (५+५+३+४+४+१२÷१२÷२५= ७०) सित्तर वोल हुए ।
* जिसमे जैन श्रर्जन सभी शुद्ध प्रशुद्ध दृष्टियो का कथन था ।