________________
१८८ ]
सूबोध जैन पाठमाला--भाग २
तिक्खुतो आयाहिण . . मत्थएण वदामि। आप मागलिक हो ... • • • सदा काल शरण हो।
तीसरे पद में श्री आचार्यजी महाराज। १-५ पांच महानत पालते हैं, ६-१० पाँच प्राचार (ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चारित्राचार तपाचार, वीर्याचार) पालते हैं, ११-१५ पाँच इन्द्रिय जीतते हैं १६-१६ चार कषाय टालते हैं, २०-२८ नव वाड सहित शुद्ध ब्रह्मचर्य पालते हैं, २६-३६ पाँच समिति-तीन गुप्ति विशुद्ध आराधते हैं, यो छत्तीस गुरण सहित हैं।
अथका पाठ सम्पदा : सम्पत्ति, ऋद्धि, १. प्राचार सम्पदा : १ सयम मे ध्रुव योगी २ निरभिमान
३. विचरते हुए और ४. बडपन्न युक्त २. श्रुत सम्पदा : १ बहुश्रुत, २ परिचित्त श्रुत ३.
विचित्र श्रुत और ४. विशुद्धघोष युक्त, ३. शरीर सम्पदा : भरे पूरे, अलज्जनीय, स्थिर सहनन
और पाँचो इन्द्रिय युक्त शरीर वाले ४. वचन सम्पदा : आदेय वचन, मधुर वचन, निष्पक्ष
वचन और असदिग्ध वचन युक्त ५ वाचना सम्पदा : सम्यक् पढाते हैं, स्थिर कराते हैं, पूरा
पढाते है और रहस्य समझाते हैं। ६. मति सम्पदा : १. अवग्रह, २. ईहा, ३. अपाय, और
४. धारणा सम्पन्न ७. प्रयोगमति सम्पदा : १. निजी योग्यता, २. परिषदा, ३.
क्षेत्र और ४ विषय, को देखकर वाद करते हैं।
पास ९
.