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सुवोध जैन पाठम ला - भाग २
हाथ जोड, मान मोड, शीश नमाकर तिक्खुत्तों के पाठ से १००८ बार नमस्कार करता
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'तिक्खुत्तो श्रायाहिणं मत्यरण वदामि । आप मागलिक हो, उत्तम हो । हे स्वामिन् । हे नाथ ! आपका इस भव, परभव, भव भव मे सदा काल शररण हो ।
दूसरे पद से सिद्ध श्री भगवान्
१ वे तीर्थसिद्ध २. प्रतीर्थ सिद्ध
३ तीर्थङ्कर सिद्ध ४. प्रतीर्थङ्कर सिद्ध
५. स्वयं बुद्ध सिद्ध
६. प्रत्येकबुद्ध सिद्ध ७. बुद्धवोधित सिद्ध
८. स्त्रीलिङ्ग सिद्ध ६ पुरुषलिङ्ग सिद्ध १०. नपुंसक लिङ्ग सिद्ध ११ स्वलिङ्ग सिद्ध १२. धन्यलिङ्ग सिद्ध १३ गृहस्थलिङ्ग सिद्ध १४. एक सिद्ध १५. अनेक सिद्ध
जा तीर्थ के सद्भाव मे सिद्ध हुए : जो तीर्थ स्थापना के पहले या तीर्थ विच्छेद के पीछे तीर्थ के प्रभाव में सिद्ध हुए
: जो तीर्थ की स्थापना करके सिद्ध हुए : जो सामान्य केवली होकर सिद्ध हुए : जो गुरू या वृषभादि निमित्त के बिना स्वयं बोध पाकर सिद्ध हुए : जो निमित्त से बोध पाकर सिद्ध हुए : जो गुरु से बोध पाकर सिद्ध हुए : जो स्त्री का शरीर पाकर सिद्ध हुए : जो पुरुष का शरीर पाकर सिद्ध हुए । : जो नपुंसक शरीर पाकर सिद्ध हुए । : जो जैन साधु के वेष मे सिद्ध हुए : जो ग्रर्जन साधु के वेश मे सिद्ध हुए : जो गृहस्थ वेष मे सिद्ध हुए
: जो अपने समय में अकेले सिद्ध हुए : जो ग्रपने समय में स्वयं को मिलाकर तीन या यावत् १०८ सिद्ध हुए