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________________ सूत्र विभाग-३२ पांच पदों की वन्दनाएँ [१८५ . अशोक वृक्ष : जो भगवान के ऊपर छाया रहता है। 8. कुसुमवृष्टि : जो देव कृत, घुटने प्रसारण और अचित होती है १०. देव दुन्दुभि : जिसे देवता विहार के समय भगवान के आगे-आगे बजाते चलते हैं। ११ तीन छत्र : जो भगवान के एक के ऊपर एक होते हैं १२. दो चमर : जिसे दो देव दोनों और वीजते हैं। (ये पौगलिक और बाह्य गुण हैं, जो तीर्थंकर नाम कर्म के उदय से होते हैं। ये आठ गुरण सहित व पुरुषाकार-पराक्रम के धारक हैं। तथा सामान्य केवली जघन्य दो करोड़ और उत्कृष्ट नव करोड़ (होते हैं) जो १. केवल ज्ञान २ केवल दर्शन के धारक, सर्व द्रव्य क्षेत्र काल भाव के ज्ञाता (३. क्षायिक सम्यक्त्व-यथाख्यात चारित्र और ४, अनन्त बलवीर्य-ये चार प्रात्मिक गुण सहित) हैं। सवैया नमो श्री अरिहन्त, करमों का किया अन्त, . हुआ सो फेवलवत, करुणा भण्डारी है । अतिशय चौतीस धार, पैतीस वाणी उच्चार, समझावे नर नार, पर उपकारी है। शरीर सुन्दराकार, सूरज सो झलकार, गुण है अनन्तसार, दोष परिहारी है। कहत है तिलोकरिख, सन वच काया करी, लुली लुली(भुक-भुक कर बार बार,वन्दना हमारी है ॥शा ऐसे श्री अरिहन्त भगक्न । अापकी दिवस सम्बन्धी श्रावनय पाशातना की हो, तो हे अरिहन्त भगवन् ! मेरा मपराध बार बार क्षमा करिये।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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