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सुबोध जैन पाठमाला - भाग २
भूमि पर लगाये जाते हैं । फिर नमस्कार मंत्र पढकर निम्न वदनाएँ बोली जाती है ।
पाँच पदों की वन्दनाएँ
पहले पद में श्री अरिहन्त भगवान् । ( ये एक काल मे) जघन्य (कम से कम ) ( महाविदेह क्षेत्र मे ) वीस, उत्कृष्ट (अधिकसे अधिक) (महाविदेह क्षेत्र की अपेक्षा) एक सौ साठ १६० तथा ( पन्द्रह कर्म भूमि की अपेक्षा) एक सौ सित्तर देवाधिदेव तीर्थंकर होते हैं । अभी वर्त्तमान काल में बीस बिहरमान ( विचरते हुए ) तीर्थकर महाविदेह क्षेत्र मे विचरते हैं । ( अरिहन्त भगवान ) एक हजार आठ १००८ लक्षण के धारक, चौंतीस प्रतिशय व पैतीस प्रतिशययुक्त वाणी से विराजमान, चौंसठ इन्द्रों के वन्दनीय, श्रट्ठारह दोष रहित,
१. अनन्त ज्ञान
२. ग्रनन्त दर्शन
३ ग्रनन्त चारित्र
४. श्रनन्त बलवीर्य
५. दिव्यध्वनि
६. भा-मण्डल ७. स्फटिक सिंहासन
: केवलज्ञान - सम्पूर्ण ज्ञान केवलदर्शन-सम्पूर्णदर्शन
: क्षायिक सम्कक्त्व व यथास्यात चारित्र : अनन्त शक्ति (ये चार गुण श्रात्मिक और ग्राम्यन्तर हैं, जो चार घाति कर्म क्षय होने से उत्पन्न होते हैं 1 ) : जो सभी को अपनी अपनी भाषा मे परिणमती है और ४ कोस तक सुनाई देती है
: चारो ओर प्रकाश का घेराव
: जिस पर विराजने से भगवान अवर दिखाई देते हैं |
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