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सूत्र-विभाग-३२. पांच पदों की वन्दनाएँ [ १८३
उ० । १ मरुदेवी माता के समान जिन्हें भाव साधुत्व पाने - के पश्चात् मुक्तिगमन मे अधिक विलम्ब न होने के कारण वेश, पहनना आवश्यक न हो, २ भरतजी के समान जिन्हे भाव साधुत्व पाने के पश्चात् वेश पहनने मे कुछ समय लग गया हो, ३ किसी चोर ने वस्त्र चुरा लिये हो, या ४ जहाँ जैन वेशधारी का विचरण निषद्ध हो, वह प्रदेश पार करना हो, आदि कारण ऐसे हैं, जब जनगुण युक्त साधु जैनवेश युक्त नहीं होता।
प्र० : जैन साधु गुण किसे कहते है ?
उ० : सर्वज्ञ सर्वदर्शी जिनेश्वरो ने वास्तविक सुसाधु के मो गुण माने हो।
पाठ ३२ बत्तीसा
विधि : पाठ ३३ मे आनेवाली 'खामेमि सव्वे जीवा' आदि गाथाएँ, भूतकाल मे श्रावक सूत्र या श्रमण सूत्र के अन्त मे दिये जाने वाले 'इच्छामि खमासमरणो' से पहले बोली जाती थीं। अब भी कई लोग उसी स्थान पर उन गाथाओ को बोलते हैं। उन गाथाओ के पश्चात् 'इच्छामि खमासमणो' देने पर चौथा प्रतिक्रमरण आवश्यक समाप्त हो जाता है। पर भूतकालीन आचार्यादिको ने वन्दना और क्षमापना का अधिक सयोजन किया है।
त इच्छा जाता का अधिक
निम्न वन्दना के लिए 'वन्दना की प्राज्ञा है। कहकर वन्दना की आज्ञा ली जाती है। फिर दोनो घुटनो को मोडकर