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________________ सूत्र-विभाग ३१, 'नमो चउवीसाए' 'निर्ग्रन्थ प्रवचन' का पाठ[ १७७ २. बुज्झति : बुद्ध (केवलज्ञानी बनते हैं) ३. मुच्चति : मुक्त (पाठ कर्म रहित) बनते हैं ४. परिनिव्वायंति परिनिर्वाण (सच्ची शाति) पाते हैं सम्व-दुवखारण : सभी (कायिक-मानसिक) दुखो का अंत करेंति (सदा के लिए पूर्ण) अत करते हैं। जैन धर्म की स्वीकृति त धम्म :: ऐसे उस (तीर्थंकर कथित्त, गुणयुक्त __ फलवान जैन) धर्म की १. सद्दहामि : श्रद्धा ( विश्वास) करता हूँ २. पत्तियामि : (उसके प्रति) प्रीति (प्रेम) करता हूँ ३. रोएमि : (उसे ग्रहण करने की) रुचि करता हूँ ४. फासेमि : (प्रत्याख्यान लेकर) स्पर्श करता हूँ ५. पालेसि : (अन्त तक विरतिचार) पालता हूँ ६ अणुपालेमि = (बार बार या पूर्व पुरुषो ने जैसे उसे पाला तदनुसार) अनुपालता हूँ तं धम्म सद्दहतो उस धर्म की श्रद्धा करते हुए पत्तियतो : प्रीति (या प्रतीति) करते हुए रोयतो, फासतो : रुचि करते हुए, स्पर्श करते हुए पालतो, अणुपालंतो : पालते हुए, अनुपालते हुए __ जैन धर्म के प्रति अभ्युत्थान तस्स धम्मस्स : उस (जैन) धर्म की फेवलि पपणत्तस्स : जो केवली प्ररूपित है प्रभुट्टियोनि : उठ कर खडा होता है साराहरगाए • अाराधना (करने) के लिए m
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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