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सुर्वाध जैन पाठमाला-भाग २ विरोमि
: विरत होता (हटता) हैं विराहणाए, : विराधना (करने) मे १. प्रसंजमं : (१७ प्रकार के) असयम को त्यागर्ने परियारणामि
योग्य जानकर देश से त्यागता हूँ संजर्म
: (१७ प्रकार के) सयम को उवसपवज्जामि देश से स्वीकार करता हूँ २. प्रबंभ
: (१८ प्रकार के) अब्रह्मचर्य को त्यागने परियारणामि.
योग्य जानकर देश से त्यागता हूँ बंभ
: (१८ प्रकार के) ब्रह्मचर्य को उवसंपवज्जामि देश से स्वीकार करता हूँ ३. प्रकप्पं
: अकल्पनीय को त्यागने योग्य जानपरियारगामि
कर देश से त्यागता हूँ .
: कल्पनीय को उवसंपवज्जाम्ि
देश से स्वीकार करता हूँ ४. अण्णारणं. : अज्ञान (ज्ञानभाव व मिथ्या ज्ञान) परियारणामि
को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ नाणं उपसंपवज्जामि : सम्यग्ज्ञान को स्वीकार करता हूँ ५. अकिरियं : अक्रिया (क्रिया अभाव व मिथ्या क्रिया) परियारगामि
को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ किरिय
: सम्यक् क्रिया को उवसपवज्जामि स्वीकार करत्म हूँ मिच्छत्त
: मिथ्यात्व (श्रद्धाअभाव व मिथ्याश्रद्धा) परियारणामि
को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ सम्मत्त
: सम्यक्त्व (सम्यक्श्रद्धा) कों उवसंपवज्जामि
स्वीकार करता हूँ प्रवोहि
: आगामी भवो मे वोधि (सम्यक्त्व, परियारामि
दुर्लभ हो, ऐसी क्रिया को त्यागता हूँ
कप्पं