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________________ १७८ । सुर्वाध जैन पाठमाला-भाग २ विरोमि : विरत होता (हटता) हैं विराहणाए, : विराधना (करने) मे १. प्रसंजमं : (१७ प्रकार के) असयम को त्यागर्ने परियारणामि योग्य जानकर देश से त्यागता हूँ संजर्म : (१७ प्रकार के) सयम को उवसपवज्जामि देश से स्वीकार करता हूँ २. प्रबंभ : (१८ प्रकार के) अब्रह्मचर्य को त्यागने परियारणामि. योग्य जानकर देश से त्यागता हूँ बंभ : (१८ प्रकार के) ब्रह्मचर्य को उवसंपवज्जामि देश से स्वीकार करता हूँ ३. प्रकप्पं : अकल्पनीय को त्यागने योग्य जानपरियारगामि कर देश से त्यागता हूँ . : कल्पनीय को उवसंपवज्जाम्ि देश से स्वीकार करता हूँ ४. अण्णारणं. : अज्ञान (ज्ञानभाव व मिथ्या ज्ञान) परियारणामि को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ नाणं उपसंपवज्जामि : सम्यग्ज्ञान को स्वीकार करता हूँ ५. अकिरियं : अक्रिया (क्रिया अभाव व मिथ्या क्रिया) परियारगामि को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ किरिय : सम्यक् क्रिया को उवसपवज्जामि स्वीकार करत्म हूँ मिच्छत्त : मिथ्यात्व (श्रद्धाअभाव व मिथ्याश्रद्धा) परियारणामि को त्यागने योग्य जानकर त्यागता हूँ सम्मत्त : सम्यक्त्व (सम्यक्श्रद्धा) कों उवसंपवज्जामि स्वीकार करता हूँ प्रवोहि : आगामी भवो मे वोधि (सम्यक्त्व, परियारामि दुर्लभ हो, ऐसी क्रिया को त्यागता हूँ कप्पं
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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