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y.२७६]- - - सुवोध जैन पीठमीला भाग २ ..... " जैन धर्म के १४ गुण' इणमेव निग्गय . . : यही निर्ग्रन्थ (तीर्थंकरों का) पावयरणं : प्रवचन (जैनधर्म) १ सच्चं . .: सत्य (हितकर व यथार्थ) है २. अणुत्तरं : अनुत्तर (सबसे बढकर) है .३. केवलियं . . . .: केवल (अद्वितीय-वेजोड) है। - ४. पडिपुष्टणं : प्रतिपूर्ण (सर्वगुणयुक्त) है। ५ नेयाउय
: न्याय (स्याद्वाद सिद्धात) सहित है ६ संसुद्ध ' : संशुद्ध (शत प्रतिशत शुद्ध)"है T७ सल्लगत्तरणं - तीनो शल्यो को काटने वाला है । FE: सिद्धिम' . : : सिद्धिमार्ग (सिद्धिदाता) है । । TE. मुत्तिमग्ग .. मुक्तिमार्ग (८ कर्म खपाने वाला) है १० निज्जारगमग : निर्यागमार्ग (मोक्ष पहुँचाने वाला) है ११ निवारणमग्गं : निर्वाण मार्ग (सच्ची शाति देने
वाला) है १२. अवितह .: अवितथ (कभी झूठा न होने वाला
__ ' ' या एक समान रहने वाला) है। १३. मविसंधि : अविसधि . (महाविदेह.. क्षेत्र की
__- - अपेक्षा संदैव अमर) है । १४. सव्व दुक्ख : सभी दुखो का (सदा के लिए पूर्ण) प्पहीण मग्गं - - नाश करने वाला है । : . 7 + .. .. जैन धर्म के ५ पाँच फल. , . : .
इत्थं ठिया जीवा , : इसमे स्थित (इस जैन धर्म की श्रद्धा # . . . . प्ररूपणा स्पर्शना करने वाले जीव १. सिझति ): सिद्ध (कृतकृत्य-सफल). बनते हैं