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सूत्र-विभाग-३१ 'नमोचउवीसाए' निर्ग्रन्थ प्रवचन' का पाठ [ १७५
उ० · दश ब ल जानने योग्य, उन्नीस बोल त्यागने योग्य, ग्यारह बोल आदरने योग्य और तीन बोल मिश्र, सब बोल (१०+१+११+३=४३) त्रयालीस हुए।
प्र० तैतीस बोल, त्रयालीस बोल कैसे हुए ?
उ० · तीन के बोल, चार अधिक तथा चार और पॉच के बोल, तीन-तीन अधिक, यो सब (४+३+३)=१० बोल अधिक होने से।
प्र० · आशातना किसे कहते है ?
उ० : १ गुण होते हुए भी गुण-रहित बताना, २. दोष न होते हुए भी दोष-सहित बताना, ३. न्यून, अधिक या विपरीत प्ररूपणा करना, ४. अविनय अपकीति करना, १५ विरुद्ध कार्य करना, ६. अशाता देना आदि।
पाठ ३१ इकतीसवाँ
२७. 'नमोचावीसाय' 'निग्रन्थ प्रवचन' का पाठ
जैन धर्म के २४ चौबीस प्रवर्तकों को नमस्कार
गमो चउवीसाए तित्थयराण उसभाइ-महावीर पज्जवसापा
: नमस्कार हो (इस अवसर्पिणी काल के) चौबीस तीर्थंकर श्री ऋषभदेव से लेकर महावीर स्वामी तक को। (क्योकिजिनका)