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________________ सूत्र-विभाग,-२०. 'तैतीसम्बोल प्रश्नोत्तरी [१७३।२ ८९ उ०पाँच महाव्रत, ग्यारहा उपासक प्रतिमा आदि जिन्हे स्वीकार किया है, उसका सम्यवस्पर्श न करना, उसमे अतिचार : लगाना, स्पर्शना का दोष है। . . . . . . . . ।। 7 'प्र': क्या 'त्यागर्ने योग्य 'और प्रौदरने योग्य बोल, 'जानने योग्य' नही हैं ? ( उ० हैं। यदि, उन्हे पहले जाना नही. जायगा, तो उन्हें त्यागा या आदरां कैसे जायगा? ___Tir. . . . . c - प्र० : यदि ऐसा है, तो कुछही बोलो को जानने योग्य र शेष बोलो को त्यागने योग्य या आदरने योग्य क्यो कहाजाता ह. - "F.. . - 3 । उ०, इसलिए कि १.कुछ बोलो मे - केवल जानने की ? मुख्यता है, क्योकि वे जानने के पश्चात् त्यागे या आदरे नही जाते।। शेष बोलो-मे-जानते की मुख्यता नही-है, पर जानकर या तो त्यागने की मुख्यता है या आदरने की मुख्यता है। प्र०: इन तैतीस बोलो मे जानने योग्य बोल कितने हैं ?'' 1 उ०: १. छह जीव निकाय २. उदह जीव के भेद या गुणस्थान ३ "पन्द्रह परमाधमिक ४. सूत्रकृताग के सोलह अध्ययन ५! ज्ञाता के उन्नीस अध्ययन ६. बावीस परीषह ७ सूत्रकृतीग' के तेवीस अध्ययनचौवीस'देव : दशा कल्प व्यवहार के २६ अध्ययन और १०. आचाराग, निशीथ के अदावोस अध्ययन । ये दस बोल जानने योग्य हैं। 74 PERFI - ! न ! - 5RF प्र०: इन तैतीस बोलो मे त्यागने योग्य बोल कितने है ?.? उ० • १ एक असयम २ दो वध ३. तीन दण्ड ४ तीन शल्य ५. तीन गर्व तीन विराना.चार कषाय . चार
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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