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१७२] सुबोध जन पाठमाला-भाग २ - .::
इन- तैतीस 'बोल' मे जानने योग्य को नहीं जाने हों, छोडने योग्य को नही छोडे हो और आदरने योग्य को नहीं: आदरे हो - तथा जिन महापुरुषो ने जानने योग्य को जाने हो, . छोड़ने योग्य को छोडे हो और आदरने योग्य को आदरे हो. उनकी आशातना की हो तो, . . . ।। - T तस्स मिच्छामि देक्कडं। : r+, 'तैतीस बोल' प्रश्नोत्तरों ..
प्र०: यह पाठ किसलिए है ?
उ० : श्रद्धा प्ररूपणा.एव स्पर्शना मे आये हुए दोषो की निवृत्ति के लिए है,।। . . . . . .. .
प्र० : श्रद्धा का दोष किसे कहते हैं ? 17 उ० : 'असयम आदि जो त्यागे योग्य है, उन्हे त्यागने योग्य न समझना यो आदरने योग्य समझना तथा गुप्ति आदि जो आदरने योग्य हैं, उन्हे आदरने योग्य न समझना या त्यागने योग्य समझेनो, एवं छह कार्य की विराधना से हटने के लिए और उनकी रक्षा के लिए जो छहा काय आदि का ज्ञान आवश्यक है, उस ज्ञान को आवश्यक न समझना, श्रद्धा का दोष है। 15 FI
॥ . . ' ' प्र०: प्ररूपणा का दोष किसे कहते है ?
उ०: 'असंयम त्यागने योग्य नही. आदरने योग्य है' इत्यादि पूरूपणा करना, प्ररूपणा का दोष है ।
प्र स्पर्शनी को दोष किसे कहते हैं ?