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सूत्र विभाग - ३० 'तैंतीस बोल' 'विस्तृत प्रतिक्रमण' [ १६५
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साता गर्व किये हो : प्रतिक्रमण करता हूँ तीन विराधनाएँ
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ज्ञान विराधना
: दर्शन विराधना
: चारित्र विराधना की हो
साया गारवेणं
पडिक्क मामि
तिहि विराहरणाहि रसारण- विराहरणाए
दंसरण - विराहरणाए
चरित - विराहणाए
पडिक्कमामि चहि कसाएहिं कोह कसाएरणं मारग कसाएगंः क्रोध कषाय मान कषाय
ससार वर्धक चार कषाये
माया कसाएरणं
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माया कषाय
: लोभ कषाय की हो
: प्रतिक्रमरण करता हूँ
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लोह-कसाएग पडिक्कमामि
उहि साहि
: प्रतिक्रमण करता है
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प्राहार-सण्णाए भय-सखाए : मेहरण-सगाए . परिग्गह सण्णाए पडिक्कमामि चह विकाहि
इत्थी कहाए भत्त कहाए
राय कहाए देस कहाए पक्कि मामि
चहि भारणेणं
श्रदृगं झारखं
रुहेणं भारणं
धम्मेरगं भारणेणं सुक्केरणं भारणेणं
अभिलाषा रूप चार संज्ञाएँ
आहार सज्ञा, भय सज्ञा
मैथुन सज्ञा
: परिग्रह सज्ञा की हो
: प्रतिक्रमण करता हूँ
धर्म विरोधी चार विकथाएँ
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: स्त्री-कथा, भक्त-कथा
राज-कथा, देश-कथा की हो
प्रतिक्रमण करता हूँ
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: योग एकाग्रता रूप चार ध्यान
: आर्त-ध्यान
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: शुक्ल-ध्यान न ध्याया हो
रौद्र-ध्यान ध्याया हो
धर्म- ध्यान