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१६६ ] सुवोध जैन पाठमाला--भाग २ पडिक्कमामि
: प्रतिक्रमण करता हूँ पंचहि किरियाहिं : कर्म वाँधने वाली पाँच क्रियाएँ काइयाए अहिगररिगयाए : कायिकी, अधिकरगिकी पाउसियाए
: प्राद्वेषिकी पारितावरिणयाए । : पारितापनिकी पारगाइवाइयाए
: प्रारणातिपातिकी क्रिया की हो पडिक्कमामि
: प्रतिक्रमण करता हूँ पहि कामगुरणेहि : इन्द्रियो के पाँच काम गुण सद्देरणं रूवेरणं, गंधेरणं : शब्द, रूप, गंध रसेग फासेरणं
: रस, स्पर्ण भोगे हो पडिक्कमामि
: प्रतिक्रमण करता हूँ पंचहि महन्वएहि : पाँच महाव्रत सव्वाश्रो पारणाइधायानो : सर्व प्राणातिपात से विरमरण वेरमरणं सवायो मुसावायायो : सर्व मृषावाद से विरमरण वेरमरणं सवाप्रो अदिण्णादारणामो : सर्व अदत्तादान से विरमण वेरमरणं सव्वाप्रो मेहुरगायो वेरमरणं : सर्व मैथुन से विरमण सव्वाअो परिग्गहाम्रो वेरमणं : सर्व परिग्रह से विरमण सम्यक्
न श्रद्धा हो
पडिक्कमामि पंचहि समिएहि इरिया-समिए भासा-
: प्रतिक्रमण करता हूँ : यत्ना प्रवृत्ति रूप पाँच समितियाँ
ईर्या समिति, भाषा
कोई 'अणुस्वएहि भूलामो' बोलते हैं।