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________________ सुर्वोच जैन पाठमाला-भाग २ पाठ ३० तीसवाँ २६. 'तँतीस बोल' 'विस्तृत प्रतिक्रमण' पडिक्कमामि एगविहे असंज पडिक्कमामि दोहि बंधणेहि राग-बंधोरणं दोस-बंधोरणं : प्रतिक्रमण करता हूँ, (समुच्चय) : एक प्रकार का असयम किया हो : प्रतिक्रमण करता हूँ : कर्म बाधने वाले दो बन्धन : राग बन्धन : द्वेष बन्धन किये हों पडिक्कमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ तिहिं दंडेहि : दण्डित करने वाले तीन दण्ड मण-दंडेणं वय-दंडेणं : मनदण्ड वचनदण्ड काय-दडेय : कायदण्ड किये हो पडिक्कमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ तिहिं गुत्तीहिं : रक्षा करने वाली तीन गुप्ति मरण-गुत्तीए वय-गुतीए : मनगुप्ति वचनगुप्ति काय-गुत्तीए : कायगुप्ति न की हों पडिक्कमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ तिहि सल्लेहि : मोक्ष रोकने वाले तीन शल्य माया-सल्लेरण नियारसल्लेरणः माया शल्य, निदान शल्य मिच्छा दंसरण सल्लेएं : मिथ्या दर्शन शल्य लगाये हों पडिक्कमामि : प्रतिक्रमण करता हूँ तिहि गारवेहि : भारी बनाने वाले तीन गर्व बढी गारवेणं रस गारबेणं : १. ऋद्धि गर्व २ रसगवं
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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