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सूत्र-विभाग-२६. 'चाउक्कलि' प्रश्नोत्तरी I १६३ जो मे देवसियो मुझे जो कोई दिन संबधी अतिचार अइयारो कमरे लगा हो,
तस्स मिच्छामि दुधकडं ३
'चाउक्कालं' प्रश्नोत्तरी । प्र०: दोनों काल प्रतिलेखन क्यो आवश्यक है ?
उ०: जैसे दिन भर मे और रात भर मे आत्मा में कोई न कोई दोष लग जाने की सभावना रहती है, और आत्मर मे लगे उन दोषो को दूर करने के लिए दो बार प्रतिक्रमण आवश्यक है, वैसे ही दिन भर मे और रात भर मे वस्त्र, पात्र, रजोहररणादि मे जीचो के प्रवेश हो जाने की सभावना रहती है, अत. उन प्रविष्ट जीवो की रक्षा के लिए उभयकाल प्रतिलेखन आवश्यक है। - म०: अनाचार से तो व्रत भग हो जाता है। क्या व्रत भग का पाप 'मिच्छा मि दुक्कड' से दूर हो जाता है ?
उ० अनजान आदि से जो स्वाध्याय-प्रतिलेखन आदि उत्तरगुरण सबधी (छोटे) नियमो का भंग होता है, वह 'मिच्छा मि दुक्कड' इस हार्दिक प्रतिक्रमण से दूर हो जाता है।
और जो जानते हुए नियमो का भग होता है, वह नवकारसी (नमस्कार सहित) तप आदि करने से दूर होता है।