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सूत्र-विभाग-२५. 'श्रमण सूत्र' चर्चा [ १४७ विपक्षकार-ग्यारहवी प्रतिमा के धारी श्रावक से अन्य श्रावक को गौचरी करना ही नहीं चाहिए।
पक्षकार-ऐसा सूत्र मे कही निषेध नही है, पर उपासक दशाग सूत्र में यह उल्लेख अवश्य है कि 'पानद श्रावक ने पहली प्रतिमा भी धारा नहीं की थी कि उससे भी पहले से वे गौचरी करने लग गये थे।
इसके अतिरिक्त दो करण तीन योग (आठ कोटि) की दया से गौचरी स्पष्ट सिद्ध होती है, क्योकि दो करण तीन योग (आठ कोटि) से दया करने वाला अपने लिए बना हुआ भोजन कर नही सकता। कारण. यह है कि 'अपने लिए भोजन भोगने से उसे 'पाप का काया से अनुमोदन' का दोष लगता है।' अतः वह गौचरी करके ही पाहार करता है। .
प्र० . 'चाउकालं सज्झायस्स' का पाठ किसलिए उपयोगी है ?
उ० : श्रावक जब पौषध करता है, तब उसे चारो प्रहर स्वाध्याय करनी चाहिए तथा प्रात:-सध्या उभय-काल प्रतिलेखन करना चाहिए। उस समय स्वाध्याय तथा प्रतिलेखन मे लगे अतिचारो के प्रतिकमरण के लिए यह पाठ उपयोगी है।
विपक्षकार- 'स्वाध्याय के अतिचार का प्रतिक्रमण' 'पागमे तिविहे' से और 'प्रतिलेखन के अतिचारो का प्रतिक्रमण' 'अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासथारए' आदि से हो सकता है।
पक्षकार-'पागमे तिविहे' का पाठ साधुयो के लिए भी है, फिर भी उसके रहते हुए भी जैसे साघुरो के लिए 'चाउस्काल सज्झायस्स' का पाठ उपयोगी है तथा जैसे साधुनो