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१४६ । सुवोध जन पाठमाला-भाग २
पक्षकार-श्रमण-सूत्र श्रावको को भी उपयोगी है। जिसका प्रबल प्रमाण यह है कि-'श्रमण-सूत्र के ११ पाठ में ६ पाठ और श्रमण-सूत्र की 'खामेमि सव्वे जीवा' आदि की गाथाएं तो श्रमण-सूत्र का निषेध करने वाले भी बोल ही रहे हैं। जिसमे नमस्कार मन्त्र, मांगलिक और इच्छाकारेण-श्रमण-सूत्र के ये तीन पाठ और खामि सव्वे जीवा आदि गाथाएँ तो ज्यों के त्यो बोली जाती हैं और शेप इच्छामिण भते, करेमि भते व इच्छामि ठाएमि-ये श्रमरण-सूत्र के तीन पाठ श्रावक योग्य कुछ, ही परिवर्तन करके वोले जाते हैं। शेष पॉच पाठ, जिन्हे नहीं बोलते हैं, वे भी श्रावको को उपयोगी हैं ही।
प्र० : पगामसिज्जाए' का पाठ किसलिये उपयोगी हैं ?
उ० श्रावक जव पौषध करता है, तब रात्रि को सोता है। उस समय गय्या में लगे अतिचारो के प्रतिक्रमण के लिए यह पाठ उपयोगी है।।
विपक्षकार-शय्या के अतिचार का प्रतिक्रमण 'पोसहस्स सम्मं अगरगुपालगया' के ध्यान से हो सकता है।
पक्षकार नही, जैसे - पौषध मे ममना-गमन के अतिचारो का प्रतिक्रमण 'इच्छाकारेणं' के पाठ के ध्यान से किया जाता है, 'पोसहस्स सम्म अगरणपालण्या' के ध्यान से नहीं। इसी प्रकार पोपध मे शय्या के अतिचारो का प्रतिक्रमण 'पोसहस्स सम्म अरणरणपालगया' के ध्यान से नही हो सकता, उसके लिए पगामसिज्जाए के ध्यान की पृथक आवश्यकता है।
प्र० : गोयरग्गचरियाए का पाठ किसलिए उपयोगी है ?
उ० . श्रावक जव गौचरी की दया करता है, तव भिक्षा मे लगे अतिचारो के प्रतिक्रमण के लिए यह पाठ उपयोगी है।