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मूत्र-विभाग-२५ "श्रमण सूत्र' चर्चा [ १४५ प्र०: श्रावको को प्रतिक्रमण मे श्रमणसूत्र पढना या नहीं? इस सम्बन्ध में पक्ष विपक्ष के तर्क बताइये ।
उ० : पक्ष-विपक्ष इस प्रकार है
विपक्षकार -'श्रमरणसूत्र' का अर्थ-'साधु का सूत्र' होता है, अत. श्रमणसूत्र 'साधु' को हो पढना चाहिए, श्रावक को नहीं पढना चाहिए।
पक्षकार - प्राय श्रमण' का अर्थ 'साधू' ही होता है,परन्तु कही-कही 'श्रमण' का अर्थ 'श्रावक' भी होता है। जैसे भगवती शतक २० उद्देशक ८ में, साधु-साध्वी, श्रावक-श्राविका चारो को "श्रमण' मानकर चारो के सघ को 'श्रमण-सघ' कहा है। इसी प्रकार यहाँ भी 'श्रमणसूत्र का' अर्थ 'साधु-साध्वी, श्रावकश्रविका इन चारो का सूत्र' है। अतः श्रमणसूत्र श्रावक का भी सूत्र होने से, उसे भी प्रतिक्रमण मे श्रमणसूत्र पढना चाहिए।
विपक्षकार-भगवती मे साध, साध्वी, श्रानक, श्राविका इन चारो को 'श्रमण' मान कर चारो के सघ को 'श्रमग सघ' नहीं कहा है, परन्तु भगवान महावीर को 'श्रमरण' मान कर उनके संघ को 'श्रमण-सघ कहा है।
पक्षकार-'श्रमण-संघ' का अर्थ 'भगवान महावीर का संघ' ऐसा कही नही किया गया है। सर्वत्र 'श्रमण-सब' का 'अर्थ 'साधु-सघ' 'मुनि-सघ' आदि ही किया है, जिससे किसी अपेक्षा श्रावक भी श्रमण' है, यही सिद्ध होता है ।
विपक्षकार 'श्रमण-सूत्र' साधुग्रो को बोलना उपयोगी है, श्रावको को नही। अत. श्रमरण-मन श्रावकरे को प्रतिक्रमण मे नही वोलना चाहिए।