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________________ १४८ ] सुबोध जैन पाठमाला - भाग २ को चौथी 'आदान- भाण्ड - निक्षेपरणा समिति' होते हुए भी उन्हें यह पाठ उपयोगी है । वैसे ही श्रावको के लिए 'आगमे तिविहे ' तथा 'अप्पडिले हिय- दुप्पडिलेहिय-सिज्जा संथारए' आदि का पाठ होते हुए यह पाठ श्रावक को उपयोगी है । प्र० श्रावको को ये तीनो पाठ प्राय काम में नही आते, अत ये पाठ श्रावक न बोले, तो क्या आपत्ति है ? • उ० : मारणातिक सलेखना जीवन के अन्तिम समय मे एक वार ही की जाती है, ग्रतएव सलेखना पाठ एक बार ही काम आता है । फिर भी जब श्रावक नित्य सलेखना पाठ बोलता है, तो ये तीनो पाठ तो पौषध मे अनेको बार काम आते है । तव श्रावक इन पाठो को बोलना कैसे छोड़ सकता है ? प्र० : जिस दिन श्रावक पौषध करे, उसी दिन ये तोनों पाठ बोल लिए जायें, अन्य दिन न बोले जायें, तो क्या श्रापत्ति है ? उ० : जैसे जिस दिन श्रावक पौषध नहीं करता, उस दिन भी वह पौषध व्रत का पाठ बोलता है, तो वह पौषधोपयोगी इन तीनो पाठो को अन्य दिन क्यो न बोले ? प्र० : तैतीस बोल का पाठ किसलिए उपयोगी हैं ? उ० : इस पाठ से श्रद्धा प्ररूपणा स्पर्शना मे लगे अतिचारो का प्रतिक्रमण किया जाता है । और इससे जानने योग्य, त्यागने योग्य और आदरने योग्य बोलो की जानकारी होती है, अतः यह पाठ श्रावक को ही क्या, श्रविरत सम्यग्दृष्टि को भी उपयोगी है ।
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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