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१४२ ] सुवोध जन पाठमाला--भाग २
प्र० : तव 'सव अशुचि स्थान मे समूच्छिम जीव उत्पन्न होते हैं।' इस कथन का उद्देश्य क्या है ?
उ० : स्त्री-योनि, नगर नाली आदि के समान जितने भी उकरडे आदि अशुचि स्थान हैं, चाहे वहाँ केवल मल-मूत्रादि ही परस्पर सयुक्त होते हो या अन्य सामान्य सैकडो वस्तुप्रो का सयोग हो जाता हो, वहाँ भी सम्मूच्छिम जीवोत्पत्ति होती है। परन्तु जैसे अन्य कुछ सचित पदार्थ परस्पर मिल जाने से या उनमे तीसरी वस्तु मिल जाने से वे सचित्त भो अचित्त हो जाते है, तो 'ये मूल से अचित्त परस्पर मिल जाने से या उनमे तीसरी वस्तु मिल जाने से सचित्त नही बनते होगे, यह धारणा अशुद्ध है। यह वताना इस कथन का उद्देश्य है। ,
प्र० : 'मुह पर 'मुख-वस्त्रिका' वाँधने से बोलते समय उस पर थूक लग कर उसमे मनुप्य संमच्छिम जीवो की उत्पत्ति होती है।' इस पक्ष का उत्तर क्या है ?
उ० : वर्तमान मे यह पक्ष रखने वालो के पूर्वज 'मुख पर मुखवस्त्रिका बाँधते थे' और 'बाँधना चाहिए' ऐसी आम्नाय भी रखते थे। ऐसा कुछ ऐतिहासिक चित्रो, लेखो और ग्रन्थो से सिद्ध है। यह तो प्रासगिक जानकारी है। वैसे उत्तर यह है कि-१. 'चाहे कोई मुखवस्त्रिका मुख पर न बाँधे, चाहे कोई मुख पर न भी रक्खे, पर सिद्धान्त से 'वायुकाय को यतना के लिए मुखवस्त्रिका मुह पर रहनी चाहिए।' यह तो वे भी मानते ही हैं। उसे मुह पर रखने पर यदि वक्ता का इस सवध मे स्वास्थ्य उत्तम नही है, तो मुखवस्त्रिका पर थूक लगेगा ही। थूक लगने पर यदि उस मे मनुष्य समूच्छिम जीवो की उत्पत्ति होती है। ऐसा माना जाय, तो सूत्रो मे जो मुखवस्त्रिका को