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सूत्र विभाग --- २३ 'मिथ्यात्व' प्रश्नोत्तरी
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जानने वाले तथा कुछ स्वार्थी लोग पथिको को अशुद्ध मार्ग बता देते हैं। उनके लक्षण ये हैं । उनके कहने में भी न आना ।' और अशुद्ध मार्ग से चलने वालो का भी विश्वास
मत करना |
ऐसा बताने या कहने में जैसे उस मार्गज्ञ के हृदय मे पथिक को नगर मे सुखपूर्वक पहुँचाने का एकान्त हितमय उद्देश्य है, वैसे ही अरिहन्तो ने जो मिथ्यात्व प्रतिपादन किया है, उसका यही उद्देश्य है कि 'भव्य जीव सुखपूर्वक मोक्षनगर में पहुँचे । १ हिंसादि मय कुमार्ग, २. हिंसामिश्रित कुमार्ग या ३. लौकिक सुखप्रद पुण्यमार्ग में भटक न जावे या अन्य इन्हे भटका न दे ।' मिध्यात्व प्रतिपादन का इससे अन्य कोई उद्देश्य नहीं है ।
प्र० : मिथ्यात्व प्रतिपादन से जीवो में एक के प्रति राग और दूसरे के प्रति द्वेष उत्पन्न होता है, अतः इसका प्रतिपादन उचित कैसे ?
उ 'मिथ्यात्व प्रतिपादन के पहले जीव वीतराग हों और मिथ्यात्व प्रतिपादन से बाद जीव राग-द्वेषयुक्त बनते हो,' यह धारणा शुद्ध नही है । उनका राग किसी न किसी ओर रहता अवश्य है या राख से दबी अग्नि के समान दबा हुआ हो सकता है पर रहता अवश्य है । मिथ्यात्व प्रतिपादन से जीवों के राग-द्वेप को एक नई मोड मात्र मिलती है । वे मोक्ष-प्रद सच्चे देव गुरु धर्म के रागी बनते हैं और मोक्ष देने में असमर्थ अशुद्ध देव गुरु धर्म के प्रति विमुख बनते हैं । परन्तु यह मोड प्रशस्त (शुभ) ही है, क्योकि उस मोड से वे मन्द राग-द्वेष वाले होते हुए एक दिन वीतराग ही बनते हैं । अतः मिथ्यात्व प्रतिपादन करना उचित ही है ।