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-सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
२३. अज्ञान मिथ्यात्व
२४. अविनय मिथ्यात्व २५. पाशातना । मिथ्यात्व
: 'ज्ञान व्यर्थ है, जाने वह ताने, भोले
का भगवान है' श्रादि श्रद्धा या कहा हो, : विनय को दासता मानी हो, आज्ञा
भग की हो, वचन उत्थापे हों, : सूदेवादि की हीलना, निन्दना की हो
उन्हे 'चूक गये' आदि कहा हो।
- ऐसे पच्चीस.प्रकार के मिथ्यात्व में से किसी मिथ्यात्व फा सेवन किया हो, कराया हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो, तो दिन सबंधी तस्स मिच्छा मि दुक्कउं ।
'मिथ्यात्व' प्रश्नोत्तरी
प्र० मिथ्यात्व प्रतिपादन का उद्देश्य क्या है ?
उ० : जैसे वन से नगर का मार्ग बतलाने वाला मार्गज पथिक को यह बताता है कि, 'तुम्हारा नगर पूर्व की ओर है, इसलिए इन पश्चिमादि दिशानो को जाने वाले मार्ग छोड दो तथा ये पूर्व दिशा को जाने वाले तीन मार्ग है। जिसमे यह पहला मार्ग बहुत कॉटेयुक्त है और पुन पूर्व से अन्य दिशा मे घूम जाने वाला है, उसे भी छोड दो, और यह पूर्व दिशा को जाने वाला दूसरा मार्ग प्राय कटकरहित तो है, परन्तु वह भो पुन: अन्य दिशा मे घूम ने वाला है, उसे भी छोड दो। यह तीसरा पूर्व मे जाने वाला मार्ग पूर्ण शुद्ध है, राजमार्ग है- और ठेठ नगर तक पहुँचता है, मेरे 'कथन पर विश्वास रख कर इस मार्ग से जायो।' और हाँ, इस मार्ग को उचित रूप न