________________
सूत्र-विभाग-२३. पच्चीस मिथ्यात्व का पाठ
१३५
मिथ्यात्व
१४. सायिक मिथ्यात्व १५. अनाभोगिक मिथ्यात्व १६. लौकिक मिथ्यात्व
१७. लोकोत्तर मिथ्यात्व
१८ कुप्रावनिक मिथ्या व १६. जिन मार्ग से न्यून श्रद्धे तो मिथ्यात्व
भी उनका दुराग्रह या स्थापना
की हो, : 'न जाने ये सच है या दूसरे ?' यों
सच्चे देवादि मे सन्देह किया हो, :: विशेष ज्ञान-विकलता से देवादि
सबधी विचार ही न किया हो, : लौकिक देव, लक्ष्मी आदि, गुरु, राजा
आदि व धर्म-विवाह आदि को सच्चे देवादि माने हो, : गोशाला, प्रतिमा आदि को तीर्थकर,
मात्र जैन वेश से जैन साधू या उत्सूत्र प्ररूपगाा को धर्म माना हो, : अन्य सदोष देव, गुरु, धर्म को सच्चे
देव, गुरु, धर्म माने हो, : जैन देव, गुरु, धर्म मे थोडी भी कमी मानो हो, एक अक्षर पर भी अश्रद्धा की हो या रक्षा आदि की कम प्ररूपणा की हो, : इतर कुदेव, कुगुरु, कुधर्म मे थोडी भी. विशेषता समझी हो, या दिगबरत्व
प्रादि को अधिक प्ररुपणा की हो, : जैन देव, गुरु, धर्म से किचित् भी विपरीत श्रद्धा की हो या अपवाद
प्रादि की विपरीत प्ररूपणा की हो, : क्रिया व्यर्थ है, जडता या दभ है आदि
श्रद्धा या कहा हो,
२०. जिन मार्ग से अधिक श्रद्ध तो मिथ्यात्व २१ जिन मार्ग से विपरीत श्रद्धे मिथ्यात्व २२ प्रक्रिया मिथ्यात्व