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मुवोध जैन पाठमाला - भाग २
१३४ ]
श्रद्धे तो मिथ्यात्व
३. धर्म को अधर्म
श्रद्ध तो मिथ्यात्व ४. प्रधर्म को धर्म
श्रद्धे तो मिथ्यात्व
५. साधु को साधु श्रद्धे तो मिथ्यात्व ६. प्रसाधु को साधु श्रद्धे तो मिथ्यात्वं
७. मोक्ष के मार्ग को
संसार का मार्ग श्रद्धे तो मिथ्यात्व
८. संसार के मार्ग को
मोक्ष का मार्ग
श्रद्धे तो मिथ्यात्व
६. मुक्त को अमुक्त श्रद्धे तो मिथ्यात्व
१०. श्रमुक्त को मुक्त | श्रद्धे तो मिथ्यात्व ११. श्रभिग्रहिक मिथ्यात्व
१२. अनाभिग्रहिक मिथ्यात्व
१३ श्रभिनिवेशिक
को मूर्ति, चित्रादि को भगवान माना हो,
: जैन धर्म को धर्म अर्थात् केवली भाषित शास्त्र को सुगास्त्र न माना हो, : ग्रन्य धर्मो को धर्म ग्रर्थात् अज्ञानी भापित शास्त्र को सुशास्त्र माना हो, • ५. महाव्रत ५ नमिति ३ गुप्तिधारी साधु को सुसाधु न माना हो, महाव्रतादि रहित स्त्री परिग्रह सहित साधु को सुसाधु माना हो,
: सम्यग्ज्ञान दर्शन, चारित्र, तप को या संवर-निर्जरा को या दानशील तप भाव को ससार मार्ग माना हो,
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मिथ्याश्रुत, मिथ्यादृष्टि, ग्रव्रत और बाल तप को या आश्रव-वध को मोक्ष मार्ग माना हो,
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: ग्ररिहत - सिद्ध को कर्ममुक्त सुदेव न माना हो या, मोक्षतत्व न माना हो, : कुदेवो को सुदेव मांना हो, मोक्ष से पुनरागमन या अवतार माना हो, : गुण-दोष की परीक्षा किये बिना, किसी मिथ्या देवादि का पक्ष किया हो,
: गुण-दोष की परीक्षा किये बिना सभी देव गुरु धर्मों को समान समझे हो,
: अपने देवादि को असत्य जानते हुए