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सुबोध जैन पाठमाला-भाग २
पाठ २२ बाईसवाँ
१६. अहारह पाप
१. प्रारणातिपात २. मृषावाद ३. अदत्तादान ४. मैथुन ५. परिग्रह ६. क्रोध ७. मान ८. माया ६. लोभ १० राग
: प्रेम,(माया और लोभजन्य परिणाम) ११. द्वेष
: वैर, (क्रोध और मानजन्य परिणाम) १२. कलह : क्लेश, झगडा (वचन से होने वाली) १३. अभ्याख्यान : (मह के सामने) कलग लगाना १४. पैशुन्य
: (पीठ पीछे) चुगली खाना १५. परपरिवाद : दूसरे की (अहितकर) निन्दा करना १६. रति
: शुभ विषयो मे आनन्द होना परति
: अशुभ विषयो मे खेद होना, १७. माया-मृषा : कपट सहित झूठ बोलना (एक साथ
दो पाप करना) १८. मिथ्या-दर्शन-शल्य : देव गुरु, धर्म, सबधी श्रद्धा का अभाव
होना या मिथ्या श्रद्धा होना; जो
मोक्ष मार्ग के लिए काँटे के समान है। ऐसे अट्ठारह प्रकार के पाप मे से किसी पापं का सेवन किया हो, करीयों हो, करते हुए का अनुमोदन किया हो, तों दिन मम्बन्धी तस्स मिच्छो मि दुर्वकडं।
तस्स सव्वस्त का पाठ तस्स, सव्वस्स : उन सभी देवसियस्स, अइयारस्स : दिन सबधी अतिचार का