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१३० ] सुबोध जन पाठमाला--भाग २
प्र० : बारह व्रतो मे मूल व्रत कितने और उत्तर प्रत कितने ?
उ० • पांच अणुव्रत मूल व्रत है, क्योंकि वे बिना समिश्रण से बने हुए हैं। शेष व्रत उत्तर व्रत है, क्योकि वे मूल व्रतों के सम्मिश्रण से या उन्ही के विकास से बने हैं ?
प्र० : उदाहरण देकर बताइए।
उ० • जैसे सामायिक व्रत पाँचो अणुव्रतो के सम्मिश्रण से बना है, क्योकि उसमे सभी अणुव्रतो का पालन होता है। तथा पाँचो अणुव्रतो के विकास से बना है, क्योकि उसमे स्थूल हिंसादि के साथ सूक्ष्म हिसाटि भी त्याग होता है ।
प्र० : व्यसन किसे कहते है ?
उ० जो स्वभाव एक बार लगने पर पुनः कठिनता से छूटता हो, ऐसा अशुभ स्वभाव 'व्यसन' कहलाता है.। उससे पाप मे अत्यन्त गृद्धि रहती है और इस भव तथा परभव में बहुत कष्ट होते हैं।
प्र व्यसन से इस भव परमव के कष्ट बताइए।
उ० · यदि पूर्व का पुण्य न हो, तो इन व्यसनो से इस भव मे प्रायः १. प्राणी का शरीर नष्ट हो जाता है। २. स्वभाव बिगड जाता है। ३ घर के स्त्री-पुत्रो को दुरवस्था हो जाती है। ४ व्यापार चौपट हो जाता है। ५. धन का सफाया हो जाता है। ६ घर द्वार नीलाम हो जाते हैं। ७ प्रतिष्ठा धूलमे मिल जाती है। राज्य से दण्डित होते हैं। ६. कारागृह मे जीवन निकलता है। १०. फाँसी पर लटकना पड़ना है। ११. अात्मघात करना पड़ता है। आदि कई इहलौकिक