________________
सूत्र-विभाग-२१ "समुच्चय' का पाठ' [१२६ जो पहले अणुव्रत का प्रश से प्रत्याख्याना है। फिर बिना दूसरा व्रत लिए खात खनन आदि से की जाने वाली मात्र प्रसिद्ध ४ चोरी छोड़ते हैं, जो तीसरे अणुव्रत का अश से प्रत्याख्यान-है। फिर ५ जूया.छोडते हैं, जो सातवे व्रत के कर्मादान का प्रशिक-त्याग है तथा-६. वेश्या, ७: परस्त्री छोडते हैं, जो चौथे व्रत का आंशिक प्रत्याख्यान है। इस प्रकार सप्त व्यसन के त्यागी दुसरा, पाँचवा, "छठा-ये तीन व्रत्त सर्वथा छोडकर पहले से सात,चत अश मात्र अपनाते हैं। यदि कोई राजपुत्र - प्रादि सप्त च्यसन भी न त्याग सके और साधु को निवास दानादिक रूप सीधा बारहवां व्रत ही अश से अपनाना चाहे, तो वह सीवे बारहवां व्रत को भी प्रश से मार्गानुसारी के रूप मे सपनर सकता है।
___प्र० तो, क्या ये व्रत कक्षा या सोढों के समान क्रम वाले नहीं हैं २
उ० : नही, यदि ये कक्षा बा सीढी के समान होते, तो पहले-पहले के ब्रत अपनाये बिना कोई पिछला-पिछला व्रत अपना नहीं पाता। पर पहले भी इस प्रकार लोगो ने व्रत अपनाये है और वर्तमान मे भी ऐसे अपनाने वरले मिलते हैं ।
२०: तब ब्रतों का ऐसा क्रम क्यों रक्खा गया ?
उ. १. कौन व्रत मुख्य है और कौन क्त गौण है ? २ कौन व्रत अपनाने से किस व्रत को सहायता मिलती है ? ३. कौन व्रत अपनाने मे सरल और कौन बन अपनाने में कठिन है ? ४. कौन व्रत अल्पकाल का और कौन ब्रत दीर्घकाल-का है ? इत्यादि बताने के लिए।