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१२६ ] सुबोध जैन पाठमाला--भाग २
४. फल : मृत्यु का दुख न हो। मृत्यु के समय शान्ति बनी रहे। देह, स्त्री, परिवार, परिग्रह छूटने का शोक न हो। 'आगे कैसी योनि मिलेगी?' इसकी चिन्ता न हो। यहाँ से काल करके वैमानिक देव बने। जन्मान्तर मे अपमृत्यु न हो। बोधि तथा धर्म-प्राप्ति मे विरह न पडे। शीघ्र मोक्ष प्राप्त हो ।
५. कर्त्तव्य : सलेखना करने के पश्चात् पाप के फल का, आत्मा की अनाहारिकता का, देह और आत्मा की पृथक्ता का तथा 'सभी सयोगो का वियोग निश्चित होता है।' इसका चिन्तन कर। सलेखना के पाँच अतिचारो का वर्जन करे। मरण को जीवन की सम्पूर्ण आराधना की सफलता-विफलता का प्रश्न समझ कर सलेखना मे अत्यन्त शान्त, वीर, दृढ और मावधान रहे।
६. भावना : सूक्तादि पर विचार करे । 'मै कब समाधिमरण मरूंगा? इसका मनोरथ करे। अब तक हुए बालमरण का खेद करे। समाधिमरण से मरने वाले गजसकुमाल, धर्मरुचि, थावच्चा पुत्र आदि का स्मरण करे।