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सूत्र-विभाग-२०. 'सलेखना' निबध [ १२५ अवस्था मे ही मरना क्या कोई बुद्धिमानी है ? बुद्धिमान नास्तिक भी उस समय औषधि आदि छोडकर शोकरहित होकर शान्त भाव से मरना उचित समझेगा। अत समाधिमरण किसी भी दृष्टि से अनुपयुक्त नही, वरन् सर्वथा उयुक्त है।
__ 'संलेखना' निबन्ध १. सूक्त • १ एक बार बाल मरण से मरने वाला जीव चार गति सम्बन्धी भावी अनन्त मरण की परम्परा खडी करता है और एक बार सलेखनायुक्त समाधिमरण से मरने वाला जीव चार' गति सम्बन्धी भावी अनन्त मरण परम्परा से आत्मा को बचा लेता है। -भग०। २. समाधिमरण के मनोरथ मात्र से जीव पूर्व कर्मों की महा निर्जरा करता है और ससार का महा अन्त करता है। --स्थानाग। ३. एक घडी का सथारा कोटि-कोटि वर्ष के सयम से भी बढ़कर है। ४. इस विश्व मे तीर्थकर भी अमर नही रहे, अतः अवश्यभावी मृत्यु से भय क्या खाते हो? पुनर्जन्म से भय खाओ, जो मरण को अवश्यभावी बनाता है।
२. उद्देश्य : आराधना के अन्तिम मुख्य मरण अवसर को शान्ति और वीरतापूर्वक सफल बनाना।
३. स्थान : सम्यग्ज्ञान द्वारा अज्ञान, सम्यग्दर्शन द्वारा मिथ्यात्व और सम्यक्चारित्र द्वारा राग-द्वेष (अवत) को नष्ट करने के पश्चात् आत्मा के साथ बँधे हए कर्मों को नष्ट करना आवश्यक है। सम्यक्तप कर्मबन्ध को नष्ट करता है । सलेखना सम्यक्तपो मे सबसे शीर्ष स्थानीय है (और यह जीवन के भी शीर्ष समय में की जाती है)। अत: इसे आगमे-तिविहे दर्शन-सम्यक्त्व और १२ व्रतो के पश्चात् अन्तिम चौथा स्थान दिया है।