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सुवोध जैन पाठमाला - भाग २
उ० जहाँ उपस्थित हो, वहाँ की भूमि का प्रतिलेखन कर 'नमोत्थुरण से ( 'जपि' से त्तिकट्टु का पाठ छोडकर ) विहरामि' तक पाठ बोलना चाहिए । आगे 'यदि उपसर्ग से बचूं, तो मुझे अनशन पारना कल्पता है अन्यथा यावज्जीवन - अनशन है।' इतना पाठ और कहना चाहिए | पालने की विधि पूर्ववत् है । पूर्ववत् दोहे से अनशन ग्रहण और नमस्कार मत्र से पारण भी किया जाता है।
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प्र०. सलेखनायुक्त अनशन आत्मघात है क्या ?
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उ० पहले तो यह समझ लेना आवश्यक है कि 'शरीरघात और आत्मघात दोनो पृथक्-पृथक् हैं ।' जिससे शरीर का अन्त हो, वह देहघात है तथा जिससे आत्मा की अधोगति हो, अवनति हो, ससार-चक्र बढता हो, वह ग्रात्मघात है ।' इतनी बात समझ लेने पर यह समझना सरल है कि सलेखनायुक्त समाधिमरण से शरोरघात होता है, आत्मघात नही होता, क्योकि सलेखनायुक्त समाधिमरण मे ग्रात्मा की उच्चगति होती है, उन्नति होती है तथा ससार-चक्र घटता है । जिस प्रकार राष्ट्रवादी के लिए स्वराष्ट्र के लिए देहोत्सर्ग करना अपराध नही, वरन् श्रेष्ठतम गौरव है, उसी प्रकार श्रात्मवादी के लिए, आत्मा के लिए शरीर त्याग करना विराधना नही,वरन् श्रेष्ठतम आराधना है |
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अब यदि शरीरघात भी देखें, तो शरीर एक दिन अवश्य ही नष्ट होने वाला है और कइयो की स्थिति तो ऐसी हो जाती है कि 'वे श्रोषध आदि किसी भी उपाय से बचते हुए दिखाई नही देते ।' ऐसी स्थिति मे पाप करते हुए, औषधि लेते हुए, इहलोक तथा शरीर-विदाई के प्रति प्रसू बहाते हुए शोकाकुल
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