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सूत्र-विभाग-२०. 'सलेखना' प्रश्नोत्तरी [ १२३ काल उठने के पश्चात् सामायिक पालने के समान विधि करके 'एयस्स नवमस्स' के स्थान पर 'सलेखना के अतिचार का पाठ' कहना चाहिए।
हे वन्दन करनसे प्रायश्चिमार यावज्ज
कई 'आहार शरीर उपाधि, पच्चक्खू पाप अठार । मरण आवे तो वोसिरे, जीउ तो आगार १। इस एक दोहे से सथारा लेते हैं और नमस्कार मत्र गिन कर पार लेते हैं।
प्र० : मारणान्तिक सलेखना के समय के लिए कुछ विशेष विधि बताइए। . उ० : सलेखना के योग्य अवसर पर सलेखना की भावना __ होने पर जहाँ तक सभव हो, साधु-साध्वियो की सेवा मे या उनके
अभाव मे जानकार अनुभवी श्रावक-श्राविका के पास जाना चाहिए अथवा उन्हे अपने स्थान पर निमन्त्रण देना चाहिए। उन्हे वन्दन कर अपने व्रत मे लगे अतिचारो की निष्कपट आलोचना करके उनसे प्रायश्चित्त ग्रहण करना चाहिए। फिर उनसे भावना और अवसर के अनुसार यावज्जीवन के लिए या कुछ काल के लिए आगार सहित अनशन लेना चाहिए। यदि किसी का भी योग न बैठे, तो स्वय आलोचना कर के 'जितना इसका प्रायश्चित होता है, वह मुझे स्वीकार है।' यह कहना चाहिए तथा स्वय अनशन लेना चाहिए। यदि तिविहाहार अनशन करना हो, तो 'पाण' शब्द नही बोलना चाहिए तथा 'ऐसे तीनो आहार पचक्ख कर' यो बोलना चाहिए। यदि गादी
पलग आदि पर सोना पडे, खुले गृहस्थो से वयावृत्य करानी पडे, -.-सम्मूच्छिम विराधना टल न सके या और भी जो पाप न छूट सकें, उनका प्रागार रखना चाहिए।
प्र० : उपसर्ग के समय संलेखना कैसे करनी चाहिए?