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सूत्र-विभाग-२१. 'समुच्चय का पाठ'
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पाठ २१ इक्कीसवां
विधि : श्रावक सूत्र पढने वाले सलेखना का अतिचार पाठ (छोटी सलेखना) पढकर 'अट्ठारह पाप' (इच्छामि ठामि) और 'तस्स सव्वस्स' का पाठ पढे ।
श्रमण सूत्र पढने वाले (बडी) सलेखना पढकर यह समुच्चय का पाठ, अट्ठारह पाप, पच्चीस मिथ्यात्व और सम्मूच्छिम मनुष्य का पाठ पढे । श्रावक सूत्र और श्रमण सूत्र की विधि आगे देखे।
'समुच्चय का पाठ
इस प्रकार १४ चौदह ज्ञान के, ५ पाँच दर्शन (सम्यक्त्व) के, ६० साठ बारह व्रतो के, १५ पन्द्रह कर्मादानो के (कुल ७५ चारित्र के) और ५ पाँच संलेखना (तप) के, इन ६६ निन्यानवे अतिचारो मे से किसी अतिचार का जानते-अजानते मन-वचनकाया से सेवन किया हो, कराया हो, करते हुए को अनुमोदन दिया हो, (भला जाना हो), तो अनन्त सिद्ध केवली भगवान की साक्षी से तस्स मिच्छा मि दुक्कड ।
_ 'समुच्चय' प्रश्नोत्तरी , प्र० । सम्यग्ज्ञान दर्शन, चारित्र और तप जिस क्रम से कहे हैं, क्या उन्हे उसी क्रम से अपनाना चाहिए ?
उ० इस लोक के लाभ या परलोक के लाभ की दृष्टि से प्रारम्भ मे ही चारित्र और तप को अपनाया जा सकता है,