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सूत्र-विभाग-२०. 'सलेखना तप' का पाठ
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करतंपि अन्नं : करते हुए अन्य का न समगुजारगामि : अनुमोदन भो नही करता हूँ । ऐसे अट्ठारह पाप पच्चक्ख कर
सव्व असणं
: सब प्रशन पारण खाइमं साइमं : पान, खाद्य और स्वाध-यो चउविहपि : चारो ही आहार पच्चक्खामि : आहार पच्चक्खता हूँ ऐसे चारोपाहार पच्चक्ख कर
जि पि य इमं सरीरं, इट्ठ
कत पिय
मारणं मरणाम धिज्ज विसासियं संमय अणुमयं
: और जो यह : शरीर (मुझे) इष्ट (इच्छनीय) था : कान्त (कमनीय) था . प्रिय (प्रेम का करण) था : मनोज्ञ (मनोहर) था : मनाम (मनोरम) था : (मुझे इससे) धैर्य : (मुझे इस पर) विश्वास था : (मेरे लिए यह) समत (माननीय)था : अनु (दोष दिखने पर भी) मत
(माननीय) था . : वहुमत (बहुत ही माननीय) था : आभूषण के करण्डिये समान था
बहुमयं भण्डकरण्डसमारणं
यहां से लेकर 'तिकटु' तक पाठ पादोपगमन (वृक्षमूल के समान एक निश्चल प्रासन से किये जाने वाले अनशन) से अन्य अनशन करते समय न पढ़ें।