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सुबोध जैन पाठमाला - भाग २
ऐसे अपने धर्माचार्यजी को नमस्कार करता हूँ । साधुप्रमुख चारो तीर्थ को खमा (क्षमायाचना ) कर सर्व जीव- राशि को खमा कर, पहले जो व्रत श्रादरे हैं, उनमे जो ( श्राज तक ) प्रतिचार दोष लगे है, वे सर्व श्रालोच (न) कर, पडिवकम ( प्रतिक्रमण ) कर, निन्दकर, निःशल्य हो कर
सव्वं पारणा इवायं
पञ्चक्खामि
सव्व मुसावायं पञ्चक्खामि
सव्वं श्रदिण्गादार
अनशन का व्रत पाठ
: सब (सम्पूर्ण ) ( हिंसा)
पञ्चक्खामि
सव्वं मेहुणं पचक्खामि सव्वं परिहं पञ्चवखामि
सव्वं कोहं मारणं जाव मिच्छा - दंसरण - सल्लं
सव्वं कररिगज्जे
'जोग पञ्चक्खामि
जावज्जोवाए तिविह तिविहेरां न करेमि न कारवेमि
१ प्रारणातिपात
: पच्चवखता हूँ ( प्रत्याख्यान करता हूँ) : सब २ मृषावाद (झूठ )
: पच्चक्खता हूँ
: सव ३ अदत्तादान (चोरी)
: पच्चक्खता हूँ
: सब ४. मैथुन (ब्रह्मचर्यं )
: पच्चक्खता हूँ
: सब ५ परिग्रह ( नव प्रकार का ) : पच्चक्खता हूँ
: सब ६ क्रोध, ७ मान, यावत्
: १८ मिथ्यादर्शन शल्य ( मिथ्यात्व ) यो
: सभी प्रकरणीय ( सावध )
: योगो का प्रत्याख्यान करता हूँ
: यावज्जीवन के लिए
: -तीन करण तीन योग से
: ( अट्ठारह. ही पाप स्वय) न करता हूँ : न कराता हूँ