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________________ ११८ ] सुबोध जैन पाठमाला - भाग २ ऐसे अपने धर्माचार्यजी को नमस्कार करता हूँ । साधुप्रमुख चारो तीर्थ को खमा (क्षमायाचना ) कर सर्व जीव- राशि को खमा कर, पहले जो व्रत श्रादरे हैं, उनमे जो ( श्राज तक ) प्रतिचार दोष लगे है, वे सर्व श्रालोच (न) कर, पडिवकम ( प्रतिक्रमण ) कर, निन्दकर, निःशल्य हो कर सव्वं पारणा इवायं पञ्चक्खामि सव्व मुसावायं पञ्चक्खामि सव्वं श्रदिण्गादार अनशन का व्रत पाठ : सब (सम्पूर्ण ) ( हिंसा) पञ्चक्खामि सव्वं मेहुणं पचक्खामि सव्वं परिहं पञ्चवखामि सव्वं कोहं मारणं जाव मिच्छा - दंसरण - सल्लं सव्वं कररिगज्जे 'जोग पञ्चक्खामि जावज्जोवाए तिविह तिविहेरां न करेमि न कारवेमि १ प्रारणातिपात : पच्चवखता हूँ ( प्रत्याख्यान करता हूँ) : सब २ मृषावाद (झूठ ) : पच्चक्खता हूँ : सव ३ अदत्तादान (चोरी) : पच्चक्खता हूँ : सब ४. मैथुन (ब्रह्मचर्यं ) : पच्चक्खता हूँ : सब ५ परिग्रह ( नव प्रकार का ) : पच्चक्खता हूँ : सब ६ क्रोध, ७ मान, यावत् : १८ मिथ्यादर्शन शल्य ( मिथ्यात्व ) यो : सभी प्रकरणीय ( सावध ) : योगो का प्रत्याख्यान करता हूँ : यावज्जीवन के लिए : -तीन करण तीन योग से : ( अट्ठारह. ही पाप स्वय) न करता हूँ : न कराता हूँ
SR No.010547
Book TitleSubodh Jain Pathmala Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParasmuni
PublisherSthanakvasi Jain Shikshan Shivir Samiti Jodhpur
Publication Year1964
Total Pages311
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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