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सूत्र विभाग -- २०. 'स लेखना तप' का पाठ
दर्भादिक
संथारा संथार कर
दर्भादिक संथारा
दुरुहकर
: दर्भ (तृण विशेष ) आदि से बना : बिछौना बिछाकर
: उस दर्भादि के सथारे पर
: चढकर
पूर्व या उत्तर (या ईशान कोण) सन्मुख पल्यंकादिक
श्रासन से बैठकर
करयल
संपरिग्गहियं सिरसावत्तं
मत्थए जल कट्टु एव वयामि
नमोत्थु अरिहतारणं
भगवतारणं
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सलेखना के लिए नमस्कार मंगल
: नमस्कार हो : अरिहन्त
: भगवन्तो को
जाव सपत्ताणं
: यावत् मोक्ष प्राप्त हुआ को
ऐसे अनन्त सिद्ध भगवान् को नमस्कार करके 'नमोत्थुरगं श्ररिहतारण भगवतारगं
: दोनो हथेलियो को : ( विधिपूर्वक ) जोडकर
: शिर पर तीन प्रदक्षिणावर्त लगा कर
: मस्तक पर अञ्जलि को स्थापन करके : इस प्रकार कहता हूँ |
नमोत्थुरणं मम
धम्मायरियtस
धम्मोवदेसगस्स
जाव संपाविउकामारणं' : यावत् मोक्ष प्राप्ति की इच्छा वालो को ऐसे जयवन्त वर्त्तमान काल मे महाविदेह क्षेत्र मे विचरते हुए तीर्थंकर भगवान् को नमस्कार करके
: नमस्कार हो, मेरे
: धर्माचार्य
: धर्मोपदेशक (साधुजी ) को