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११६ ] सुवोध जन पाठमाला-भाग २ साधुदान का योग न बैठे, तो उसका खेद करना। दान देने वाले सुबाहुकुमार, शालीभद्र आदि के चरित्र पर ध्यान देना।
पाठ २० बी
१८ 'संलेखना' 'तप का पाठ'
अह, भतेअपच्छिममारणांतियमलेहरगा
दूसरणा पाराहगा।
सौषधशाला
जकर उच्चार-पासवरण भूमिका डिलेहकर, मिरणागमरणे [डिक्कम कर
: अब, हे भगवन् । : इस जीवन मे सबसे पश्चात् : मरण-रूप अन्तिम समय मे : सलेखना, (शरीर व कषाय को कृश
बनाने वाले, आलोचना सहित तप)को : (स्वीकार कर) सेवन करता हूँ (तथा) : अन्तिम समय तक पालन करता हूँ। सलेखना विधि : पौषधशाला का : (रजोहरणादि से) प्रमार्जन कर : मल-मूत्र (परठना पडे, इसलिए : उसकी) भूमि : का प्रतिलेखन कर : इर्यापथिक का प्रतिक्रमण कर, (तिक्खुत्तो, नमस्कार मत्र, 'इच्छाकारेण' 'तस्सउत्तरी' 'इच्छाकारेण' या 'लोगस्स' का ध्यान तथा प्रकट लोगस्स कह कर