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१२० ] सुबोध जैन पाठमाला-भाग २ रयग-करण्डगभूयं : रत्नो के करण्डिये (पेटी के) समान
__ था
मा रणं सीयं
: (कही इसे) गीत (सर्दी) न हो मा रणं उन्ह • उष्णता (गर्मी) न हो मा रणं खुहा : भूख न लगे मा ग पिवासा : प्यास न लगे मा रणं वाला : सर्प (आदि) न काटे मारणं चोरा
चोर आदि का भय न हो मा रणं दंस-मसगा : डास, मच्छरादि न सतावे मा रणं वाइयं : न वात (वायु) रोग हो पित्तियं, कपिफयं, : न पित्त रोग हो, न कफ रोग हो संभीम
: न भयकर सण्णिवाइयं : सन्निपात (दो या तीन दोष) हो विविहा
: (यो) अनेक प्रकार के रोगायका
: (विलम्ब से या शीघ्र मारने वाले)
रोगातक परीसहा
: (तथा भूख-प्यास के) परीसह । उवसग्गा
: (और देव आदि के) उपसर्ग (कष्ट) फासा फुसन्तु
स्पर्श न करे। (ऐसा मैं चाहता था
ऐसे उस शरीर को भी) चरहि
: अन्त के उस्सासनिस्सासेहि : उच्छ्वास निच्छ्वास (श्वासोच्छ्वास)
तक वोसिरामि
: त्याग करता हूँ त्तिकटु
: ऐसे शरीर को वोसिरा के कालं, प्रणवकंखमारणे, : मृत्यु की चाह (तथा भय) न करते विहरामि
: हुए विहार करता हूँ (विचरता हूँ)