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१०६ ] सुबोध जन पाठमाला-माग २
और यदि इनकी छूट सामायिक मे दी जायगी, तो सामायिक मे ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की कोई आराधना नहीं हो सकेगो तथा पौषध विशेष काल का है, अतः वह इन छूटो के बिना सामान्य लोगों को पालन करना कठिन होता है और बिना इन छूटो के सामान्य लोगो की ज्ञान, दर्शन, चारित्र, तप की आराधना मे समाधि नही रहती तथा २. उदाहरणमय उत्तर यह है कि जैसे व्यापारी बडे ग्राहक को विशेष सुविधाएँ देता है, छोटे ग्राहक को नहीं देता। इसी प्रकार भगवान् ने पौषध वाले को बहुत धर्म का ग्राहक होने से विशेष सुविधाएँ दी हैं तथा सामायिक वाले को अल्प धर्म का ग्राहक होने से सुविधाएँ नही दी हैं।
प्र० : प्रतिलेखन-प्रमार्जन किसे कहते है ?
उ० , 'मुखवस्त्रिका आदि मे कोई जीव है या नहीं? इस दृष्टि से शीघ्रता प्रादि न करते हुए तथा शब्दादिक विषय-विकार या धर्मकथादिक कार्य न करते हुए 'उन्हे लगन से देखना प्रतिलेखन है तथा जीवादिक दोखने पर उन्हे कष्ट न हो ऐसी यतना से उन्हे कोमल पूंजनी से हल्के हाथों से पूंजना तथा एकात सुरक्षित स्थान मे ले जाकर छोडना प्रमार्जना है। जीव न दीखने पर भी रात्रि को रजोहरण से आगे चलने की भूमि शुद्ध करना तथा दिन को पौषधशाला की सचित्त रज साफ करना आदि भी प्रमार्जना है।
प्र० : प्रतिलेखन-प्रमार्जन किस क्रम से करना चाहिए? ' . उ० : उभयकाल पहले मुखवस्त्रिका, फिर पूजनी, फिर वस्त्र, फिर सस्तारक, फिर पौषधशाला, फिर मल-मूत्र भूमि और गौचरी के पात्र हो, तो फिर उन णत्रो. का प्रतिलेखना करना चाहिए।